Shri Gurudasa Nivedana
Monday, March 9, 2015
दरबारी कानड; आदि ताल
दीन शरण्य पाहि रे । देवदेव दयानिधे ॥
हीन मानवोहम् । हेम पद्मपाद श्रीपाद ॥
माता त्वमेव पीत त्वमेव । माधव सर्वं त्वमेव ॥
पातकादि निवारक । पावन श्रीगुरु दास पोषक ॥
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